सहरसा। कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण बहाल किए गए लॉकडाउन में गरीबों और खासकर भिक्षुकों की हालत सबसे खराब हो गई है।
सहरसा जिला मुख्यालय के वार्ड नंबर 36 में 105 भिक्षुक परिवार स्थाई रूप से निवास करते हैं। वर्ष 2011 में तत्कालीन जिलाधिकारी ने इनलोगों को रेलवे किनारे से हटाकर बसने के लिए यहां पर सरकारी जमीन मिली, परंतु इनलोगों को अन्य कोई सरकारी सुविधा नहीं मिल सकी। इस भिक्षुक परिवार में अधिकांश लोग कुष्ठ पीड़ित हैं, जिसके परिवार के स्वस्थ सदस्य लकड़ी के ठेलानुमा गाड़ी पर घूमा- घूमाकर गीत गाकर भीख मांगते हैं। पहले जब ये लोग गाते थे कि गरीबों की सुनो वो तेरी सुनेगा, तुम एक पैसा दोगे वह दस लाख देगा.। गीत गाकर मोहल्ले से गुजरते थे, तो मोहल्ले की महिलाएं गीत सुनकर ही कुछ- न- कुछ लेकर अपने दरवाजे पर खड़ी हो जाती थी। इसी तरह इनलोगों की जिदगी चलती रही।
आज भी लॉकडाउन के दौरान अपनी रोटी की तलाश में ये लोग सड़क पर सन्नाटे में भटकते हैं, परंतु बाजार की दुकानों की तरह मोहल्ले के दरवाजे बंद पड़े मिलते हैं। इनके गीत भी लोगों के कान तक पहुंच रहा है, परंतु एकाध को छोड़कर कोई बाहर निकलने की जहमत नहीं उठाता। भूख के सामने इनलोगों को मौत का खौफ भी नहीं है। डीबीरोड में भीख के लिए भटकते शिवो सादा से पूछा गया कि लोग संक्रमण और बीमारी के भय से घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं। ऐसे में आपलोग अपने घर से इतनी दूर क्यों भटक रहे हैं? तो उनका कहना है कि हुजूर बीमारी तो जब सामने आएगी, देखा जाएगा। अभी तो भूख ही मार रहा है। इसलिए इसी का सामना कर रहा हूं। शिवो की तरह अन्य भिक्षुक परिवारों का भी यही हाल है। इस संबंध में पूछे जाने पर सदर एसडीओ शंभूनाथ झा ने कहा कि सभी भिक्षुक परिवारों के बीच भी सूखा राहत वितरण किया गया है। लॉकडाउन रहने तक प्रशासन यह व्यवस्था जारी रखेगा। किसी भी भूखे मरने नहीं दिया जाएगा।