समाज की तिरस्कार भरी नजरों को मात देकर सानिया किन्नर बनीं होमगार्ड जवान, दाउदपुर थाना में मिली तैनाती
रिविलगंज (सारण)।
समाज में किन्नरों के प्रति प्रचलित उपेक्षा, तिरस्कार और भेदभाव को पीछे छोड़ते हुए सानिया किन्नर ने अपनी मेहनत, लगन और आत्मविश्वास से एक नई पहचान बनाई है। सैनिक परिवार से ताल्लुक रखने वाली सानिया, जिनका जन्म नाम सन्नी कुमार राम है, आज बिहार होमगार्ड पुलिस में जवान के रूप में तैनात हैं। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्हें अपने गृह क्षेत्र के नजदीक सारण जिले के दाउदपुर थाना में पदस्थापित किया गया है।
रिविलगंज थाना क्षेत्र के रामपुर भट्ट गांव निवासी बीएसएफ जवान राम पुकार राम के सबसे छोटे बच्चे के रूप में जन्मी सानिया किन्नर होने के कारण बचपन से ही सामाजिक तानों, मजाक और उपेक्षा का शिकार रहीं। हालांकि उनके परिवार ने उनकी परवरिश और शिक्षा में कभी कोई कमी नहीं आने दी।
मैट्रिक, इंटरमीडिएट और बीएससी तक की पढ़ाई पूरी करने के बावजूद समाज की संकीर्ण सोच ने उन्हें मानसिक रूप से गहरे आहत किया, जिसके बाद उन्होंने घर-परिवार और गांव छोड़कर गोपालगंज में किन्नरों की मंडली के साथ रहना शुरू कर दिया।
किन्नरों की मंडली के साथ संघर्ष भरा जीवन
गोपालगंज में किन्नरों के साथ रहते हुए सानिया ने बधाई, नृत्य और ट्रेनों में घूम-घूमकर शगुन मांगकर जीवनयापन किया। कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और आत्मसम्मान के साथ आगे बढ़ने का संकल्प बनाए रखा। मंडली के साथ रहते हुए भी वह समय निकालकर पढ़ाई करती रहीं और सरकारी नौकरी पाने का लक्ष्य नहीं छोड़ा।
लगातार प्रयास और कड़ी मेहनत के बाद सानिया का चयन बिहार होमगार्ड जवान के रूप में हो गया। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद जब उन्हें दाउदपुर थाना में तैनाती मिली, तो यह केवल उनकी व्यक्तिगत सफलता नहीं रही, बल्कि पूरे किन्नर समाज के लिए प्रेरणा बन गई।
सानिया कहती हैं कि समाज किन्नरों को अक्सर केवल उपहास या सहानुभूति की नजर से देखता है, जबकि उन्हें भी समान अवसर, सम्मान और अधिकार मिलना चाहिए।
परिवार की पृष्ठभूमि और आगे का सपना
15 फरवरी 1996 को जन्मीं सानिया किन्नर उर्फ सन्नी कुमार राम ने वर्ष 2011 में मैट्रिक, 2013 में इंटरमीडिएट और 2018 में बीएससी की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की। उनके पिता बीएसएफ में कार्यरत हैं, जबकि भाभी बिहार पुलिस में सिपाही के पद पर मोतिहारी में तैनात हैं। बड़ा भाई गांव में किराना दुकान चलाता है और मंझिला भाई बिजली मिस्त्री का काम करता है। परिवार आर्थिक रूप से संपन्न है और गांव में दो मंजिला मकान भी है, इसके बावजूद सामाजिक दबाव ने सानिया को घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
सानिया बताती हैं कि उनके पिता चाहते थे कि वह पुलिस में दारोगा बनें, लेकिन जेंडर पहचान के कारण पिता अब उनसे बात नहीं करते। हालांकि मां, भाई और बहन आज भी उनसे प्रेम और संवाद बनाए हुए हैं। वह स्पष्ट करती हैं कि उन्होंने स्वयं घर छोड़ा था, उन्हें किसी ने निकाला नहीं।
आज होमगार्ड जवान बनने के बाद भी सानिया का सपना यहीं खत्म नहीं होता। वह दारोगा बनने की तैयारी कर रही हैं और कहती हैं कि जन्मभूमि भले ही रिविलगंज (सारण) हो, लेकिन कर्मभूमि थावे, गोपालगंज है। उनकी यह यात्रा इस बात की मिसाल है कि यदि संकल्प मजबूत हो, तो सामाजिक भेदभाव भी सफलता की राह नहीं रोक सकता।