क्यों जरूरी है वरीयता निर्धारण?
राज्य के विद्यालयों में इस समय कई प्रकार के शिक्षक कार्यरत हैं। जैसे कि स्थानीय निकाय शिक्षक, विशिष्ट शिक्षक, बीपीएससी से चयनित विद्यालय अध्यापक, प्रधान शिक्षक और प्रधानाध्यापक। बीते वर्षों में हुए स्थानांतरण, पदोन्नति और श्रेणी परिवर्तन ने शिक्षकों की सेवा निरंतरता, वेतनमान और पद की स्पष्टता को लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर दी है।
विशेष रूप से विशिष्ट शिक्षकों और बीपीएससी से चयनित शिक्षकों के बीच वरीयता को लेकर विवाद ने तूल पकड़ा है। एक ओर जहां विशिष्ट शिक्षक वर्षों से सेवा में हैं, वहीं बीपीएससी के माध्यम से नियुक्त नए शिक्षक परीक्षा प्रणाली से चयनित होकर आए हैं और वे स्वयं को अधिक वरीय मानते हैं।
प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रभाव
यह विवाद केवल व्यक्तिगत लाभ जैसे वेतन या पदोन्नति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर स्कूलों के प्रशासनिक प्रबंधन पर भी पड़ रहा है। जिन विद्यालयों में स्थायी प्रधानाध्यापक की नियुक्ति नहीं हो पाई है, वहां प्रभारी प्रधानाध्यापक की तैनाती वरीयता के आधार पर की जाती है। स्पष्ट दिशा-निर्देश न होने से असमंजस और संघर्ष की स्थिति बन रही है, जिससे स्कूलों की कार्यप्रणाली बाधित हो रही है।
समिति का उद्देश्य और कार्यदायित्व
गठित समिति का मुख्य उद्देश्य है विभिन्न श्रेणियों के शिक्षकों की नियुक्ति नियमावलियों का विश्लेषण कर एक पारदर्शी और व्यवस्थित वरीयता निर्धारण प्रणाली विकसित करना। यह प्रणाली सेवा की निरंतरता, वेतन संरक्षण, पदोन्नति के अवसर और प्रशासनिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार की जाएगी। समिति को यह भी अधिकार है कि वह आवश्यकता पड़ने पर विधिक विशेषज्ञों, शिक्षक संगठनों और वरिष्ठ अधिकारियों से परामर्श ले सके।