बिहार में गोपालगंज जिले के कुचायकोट थाना में एक अनोखी परंपरा हर साल सावन पूर्णिमा पर निभाई जाती है. यहां थानेदार और पुलिसकर्मी पीली धोती पहनकर माता सती की पूजा करते हैं.
इस दिन ये पुलिस थाना कम और कोई पवित्र धर्मस्थल ज्यादा नजर आता है.
पीली धोती में थानेदार और पुलिसकर्मी
कुचायकोट थाने के थानेदार मुख्य जजमान बनते हैं, जबकि अन्य पुलिसकर्मी वर्दी छोड़कर पीली धोती पहनते हैं. यह आयोजन थाना परिसर में भव्य रूप से होता है. इस दिन थाना किसी सरकारी कार्यालय से ज्यादा एक पवित्र स्थल जैसा नजर आता है.
खाकी की जगह पीली धोती, लाठी की जगह पूजा की थाली… और पूरा थाना बदल जाता है मंदिर में. बिहार के गोपालगंज जिले के कुचायकोट थाने में सावन की पूर्णिमा का नजारा कुछ ऐसा ही होता है. यहां थानेदार से लेकर सिपाही तक वर्दी छोड़कर पीली धोती पहन लेते हैं और यजमान की भूमिका निभाते हैं. यह परंपरा अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है, जिसके पीछे एक सती की कहानी जुड़ी है.
अंग्रेजों के समय से शुरू हुई सती पूजा की परंपरा
कहा जाता है कि जब कवल यादव की पत्नी ने अपने पति के शव को गोद में लेकर स्वयं चिता पर बैठ गईं, तो अचानक चिता में आग स्वतः प्रज्वलित हो उठी. इस घटना को सती की घटना माना गया और सावन पूर्णिमा के दिन ही यह चमत्कार हुआ था. कहते हैं, जहां यह घटना हुई, वहीं बाद में थाना भवन का निर्माण हुआ. अंग्रेजों के शासनकाल से ही यहां पुलिस और स्थानीय लोग मिलकर मां सती की पूजा करने लगे. धीरे-धीरे यह एक अटूट परंपरा में बदल गई.
पूरे थाना परिसर में होता है हवन, भंडारा और प्रसाद वितरण
इस परंपरा के तहत हर साल सावन पूर्णिमा के दिन थाना परिसर में बड़े पैमाने पर हवन, पूजन और भंडारे का आयोजन होता है. थाने के सभी अधिकारी और जवान इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. पुलिसकर्मी न केवल पूजा की तैयारियां करते हैं, बल्कि प्रसाद वितरण और भंडारे में भी अपनी सेवा देते हैं.
आस-पास के गांवों के लोग भी इस दिन बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं. पूजा के दौरान मंत्रोच्चार के बीच मां सती का आह्वान किया जाता है. पुलिसकर्मियों का मानना है कि इस अनुष्ठान से साल भर मां सती की कृपा थाने में तैनात जवानों और अधिकारियों पर बनी रहती है.