जब भी कभी पहाड़ काटकर कुछ अच्छा काम करने की खबर सामने आती है तो हमारे मन में सिर्फ दशरथ राम मांझी का नाम आता है। जिन्हें बिहार का माउंटनमैन भी कहते हैं।
लेकिन मांझी की ही तरह एक 70 साल के बुजुर्ग लौंगी भुईयां ने अपनी मेहनत से गांवों के सैकड़ों लोगों की मुश्किलें दूर कर दी। तीस साल कड़ी मेहनत से पहाड़ काट कर तीन किलोमीटर लंबी नहर बना डाली। जिससे तीन गांव के लोगों को फायदा हो रहा है।
बिहार के गया के रहने वाले लौंगी भुईयां की कड़ी मेहनत से अब लोगों को सिंचाई करने में ज्यादा समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। खेतों को भरपूर पानी मिल सकेगा।
उनके परिवार के लोगों ने बताया कि लौंगी भुइया रोज घर से निकलकर जंगल पहुंच जाया करते थे और अकेले नहर बनाया करते थे।
लेकिन मांझी की ही तरह एक 70 साल के बुजुर्ग लौंगी भुईयां ने अपनी मेहनत से गांवों के सैकड़ों लोगों की मुश्किलें दूर कर दी। तीस साल कड़ी मेहनत से पहाड़ काट कर तीन किलोमीटर लंबी नहर बना डाली। जिससे तीन गांव के लोगों को फायदा हो रहा है।
बिहार के गया के रहने वाले लौंगी भुईयां की कड़ी मेहनत से अब लोगों को सिंचाई करने में ज्यादा समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। खेतों को भरपूर पानी मिल सकेगा।
उनके परिवार के लोगों ने बताया कि लौंगी भुइया रोज घर से निकलकर जंगल पहुंच जाया करते थे और अकेले नहर बनाया करते थे।
बिना मजदूरी के काम करते थे जिसके लिए हम उन्हें ये सब करने की मना भी करते थे।
लौंगी भुईयां ने बताया कि मेरी पत्नी,बहु और बेटा सभी लोग ये काम करने की मना करते थे। क्योंकि इसमें कोई पैसा नहीं मिलता था, और सब मुझे पागल कहने लगे थे। लेकिन नहर में पानी आने से, आज सब मेरे इस काम की तारीफ करते हैं।
उन्होंने बताया कि पहले वह मक्का और चना की खेती करते थे। बेटा काम की तलाश में शहर चला गया। गांव के ज्यादातर लोग काम करने दूसरे राज्यों में चले गए।
फिर एक दिन में बकरी चरा रहा था सोचा कि अगर गांव में पानी आ जाए तो पलायन रुक सकता है। लोग खेतों में फसल की पैदावार करेंगे। आज नहर बनकर तैयार है और इलाके के तीन गांव के 3000 हजार लोग अब इस नहर से फायदा ले रहे हैं।
लौंगी भुईयां ने बताया कि मेरी पत्नी,बहु और बेटा सभी लोग ये काम करने की मना करते थे। क्योंकि इसमें कोई पैसा नहीं मिलता था, और सब मुझे पागल कहने लगे थे। लेकिन नहर में पानी आने से, आज सब मेरे इस काम की तारीफ करते हैं।
उन्होंने बताया कि पहले वह मक्का और चना की खेती करते थे। बेटा काम की तलाश में शहर चला गया। गांव के ज्यादातर लोग काम करने दूसरे राज्यों में चले गए।
फिर एक दिन में बकरी चरा रहा था सोचा कि अगर गांव में पानी आ जाए तो पलायन रुक सकता है। लोग खेतों में फसल की पैदावार करेंगे। आज नहर बनकर तैयार है और इलाके के तीन गांव के 3000 हजार लोग अब इस नहर से फायदा ले रहे हैं।