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सहरसा। दिल्ली अग्निकांड की आग भले ही दिल्ली में ठंडी हो गई हो। परंतु नरियार में यह आग अब भी धधक रही थी। बुधवार देर रात जैसे ही छह लोगों का शव नरियार पहुंचा पूरा नरियार रो पड़ा। परिजनों के क्रंदन व चीत्कार से हर लोगों की आंखें नम हो रही थी। शव पहुंचते ही दिल्ली का मंजर लोगों के नजरों के सामने नाचने लगा। गरीबी व मुफलिसी में जीने वाले मृतक के परिवार के लोग बस एक ही रट लगाए हुए थे कि अब उनका गुजारा कैसे होगा। बुधवार की देर रात एंबुलेंस की सायरन की आवाज लोगों के कानों तक पहुंची पूरा गांव मृतकों के घर की ओर दौड़ पड़े। परिजनों के चीत्कार को सुनकर लोग भी अपने आंखों के आंसू नहीं रोक पा रहा थे। बुधवार दोपहर गांव में दिल्ली हादसे के शिकार फरीद का शव पहुंचा था। जबकि देर रात एम्बुलेंस से सभी संजर, राशिद, सेजल, ग्यासुद्दीन एवं सुजीन का शव पहुंचा। जबकि गुरुवार दोपहर बाद अफजल का शव आया। गुरुवार को सुबह से ही नरियार ही नहीं आसपास के गांव के लोग भी मृतकों के घर पर पहुंच गये थे। वहीं लोग इनलोगों की गरीबी और तंगहाली पर सरकार के नुमाइंदे पर सवाल खड़ाकर रहे थे। लोगों का कहना था कि सरकार की योजनाएं भले ही गरीबी उन्मूलन के लिए चलती हो परंतु इन गरीबों पर सरकार के अधिकारी की नजर नहीं गई। फूस और झोपड़ी में किसी तरह गुजर-बसर करने वाले लोग बस एक ही रट लगा रहे थे कि आखिर अब घर का गुजारा कैसे होगा। गरीबी व रोजगार की कमी के कारण ही ये लोग दिल्ली के जैकेट फैक्ट्री में काम कर परिवार का गुजारा करते थे। लेकिन अब इन परिवारों पर गम का पहाड़ टूट पड़ा है। जबकि पहुंचने वाले लोगों का गुस्सा प्रशासन के प्रति सातवें आसमान पर था।
सहरसा। दिल्ली अग्निकांड की आग भले ही दिल्ली में ठंडी हो गई हो। परंतु नरियार में यह आग अब भी धधक रही थी। बुधवार देर रात जैसे ही छह लोगों का शव नरियार पहुंचा पूरा नरियार रो पड़ा। परिजनों के क्रंदन व चीत्कार से हर लोगों की आंखें नम हो रही थी। शव पहुंचते ही दिल्ली का मंजर लोगों के नजरों के सामने नाचने लगा। गरीबी व मुफलिसी में जीने वाले मृतक के परिवार के लोग बस एक ही रट लगाए हुए थे कि अब उनका गुजारा कैसे होगा। बुधवार की देर रात एंबुलेंस की सायरन की आवाज लोगों के कानों तक पहुंची पूरा गांव मृतकों के घर की ओर दौड़ पड़े। परिजनों के चीत्कार को सुनकर लोग भी अपने आंखों के आंसू नहीं रोक पा रहा थे। बुधवार दोपहर गांव में दिल्ली हादसे के शिकार फरीद का शव पहुंचा था। जबकि देर रात एम्बुलेंस से सभी संजर, राशिद, सेजल, ग्यासुद्दीन एवं सुजीन का शव पहुंचा। जबकि गुरुवार दोपहर बाद अफजल का शव आया। गुरुवार को सुबह से ही नरियार ही नहीं आसपास के गांव के लोग भी मृतकों के घर पर पहुंच गये थे। वहीं लोग इनलोगों की गरीबी और तंगहाली पर सरकार के नुमाइंदे पर सवाल खड़ाकर रहे थे। लोगों का कहना था कि सरकार की योजनाएं भले ही गरीबी उन्मूलन के लिए चलती हो परंतु इन गरीबों पर सरकार के अधिकारी की नजर नहीं गई। फूस और झोपड़ी में किसी तरह गुजर-बसर करने वाले लोग बस एक ही रट लगा रहे थे कि आखिर अब घर का गुजारा कैसे होगा। गरीबी व रोजगार की कमी के कारण ही ये लोग दिल्ली के जैकेट फैक्ट्री में काम कर परिवार का गुजारा करते थे। लेकिन अब इन परिवारों पर गम का पहाड़ टूट पड़ा है। जबकि पहुंचने वाले लोगों का गुस्सा प्रशासन के प्रति सातवें आसमान पर था।
नरियार में दूसरी बार एक साथ निकला इतने लोगों का जनाजा।
सहरसा। नरियार एकबार फिर इतने बड़े हादसे का गवाह बना। लगभग 20 वर्ष पूर्व राजनपुर बाजार बारात जाने के दौरान सड़क हादसे में नौ लोगों की मौत हो गयी। उस समय पूरा गांव गम में डूब गया था। सामूहिक रूप से मृतकों का जनाजा निकला था। इस घटना के बीस साल बाद एकबार फिर गांव ऐसे दर्दनाक हादसे का गवाह बना है।
ज्ञात हो कि दिल्ली में हुए अग्निकांड हादसे से सहरसा के नरियार कब्रिस्तान में दफनाने के लिए एक साथ गुरुवार को पहुंचा आधा दर्जन लोगों का शव। शव के जनाजे में शामिल लोगों से कब्रिस्तान भर गया। लोग मिट्टी की रस्म अदा करने के लिए अपने बारी का इंतजार करते दिखे। पूरा माहौल गमगीन हो गया था। महिलाओं और बच्चों से क्रंदन से वहां मौजूद लोगों की आंखें नम हो जा रही थी।