भारत की रेल यात्रा में एक नया अध्याय जुड़ गया है. बिहार के मधेपुरा में बनी 12,000 हॉर्स पावर की 'हाई पावर' इंजन अब केवल मालगाड़ियों तक सीमित नहीं रहेगी. इस स्वदेशी ताकत का इस्तेमाल अब मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों में भी शुरू हो गया है.
इसकी शुरुआत सहरसा-समस्तीपुर-पटना रूट की राज्यरानी एक्सप्रेस से की गई है. आने वाले महीनों में यह इंजन राजधानी एक्सप्रेस और सम्पूर्ण क्रांति जैसी प्रमुख ट्रेनों को भी खींचेगा. यह न केवल बिहार बल्कि भारतीय रेल की तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है.
मधेपुरा- जहां से दौड़ी भारत की ताकत
मधेपुरा की रेल इंजन फैक्ट्री का निर्माण वर्ष 2015 में शुरू हुआ था और इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2018 को किया था. इस फैक्ट्री की खासियत यह है कि यहां तैयार इंजन दुनिया के सबसे शक्तिशाली इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में गिने जाते हैं. फ्रांस की कंपनी अल्स्टॉम (Alstom) के सहयोग से बनी यह फैक्ट्री अब पूरी तरह से भारत में डिजाइन, असेंबल और टेस्टिंग करने में सक्षम है.
शुरुआती वर्षों में यहां बने इंजन केवल मालगाड़ियों के लिए तैयार किए गए थे, जो डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर 6000 टन तक के भार को 100 किमी प्रति घंटे की औसत गति से खींचने में सक्षम थे. लेकिन अब तकनीकी सुधार और सफल परीक्षण के बाद इन्हें यात्री ट्रेनों के लिए भी योग्य बना दिया गया है.
राज्यरानी एक्सप्रेस बनी नई शुरुआत का प्रतीक
मधेपुरा फैक्ट्री से निकला यह हाई पावर इंजन अब राज्यरानी एक्सप्रेस को खींच रहा है, जो सहरसा से पटना के बीच चलती है. रेल सूत्रों का कहना है कि आने वाले दिनों में राजधानी एक्सप्रेस और सम्पूर्ण क्रांति जैसी लंबी दूरी की ट्रेनों में भी इन इंजनों का इस्तेमाल किया जाएगा. इससे न केवल ट्रेन की गति और टाइम टेबल सुधरेगा बल्कि ईंधन दक्षता और पर्यावरणीय मानकों में भी सुधार होगा.
12,000 हॉर्स पावर की ताकत
मधेपुरा में तैयार हुआ यह इंजन 12,000 हॉर्स पावर की क्षमता वाला है, यानी यह भारत के सबसे शक्तिशाली इलेक्ट्रिक इंजनों में से एक है. यह इंजन छह हजार टन तक के माल को आसानी से खींच सकता है और अधिकतम 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है. इसका थ्री-फेज ड्राइव सिस्टम (DIBT आधारित) ऊर्जा दक्षता को बढ़ाता है और बिजली की खपत को कम करता है.
रेलवे विशेषज्ञों का मानना है कि यह इंजन भारतीय रेल के फ्रेट और पैसेंजर दोनों नेटवर्क में गति और क्षमता को "दोगुना" करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा.
फ्रांस से भारत तक और अब दुनिया के लिए मॉडल
मधेपुरा का यह मॉडल अब केवल भारत तक सीमित नहीं रहेगा. फ्रांस की कंपनी अल्स्टॉम इस तकनीक को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लागू करने की तैयारी में है. भारतीय रेलवे का यह अनुभव मॉडल अब बनारस रेल इंजन फैक्ट्री में भी लागू किया जा रहा है. इसका मतलब है कि आने वाले समय में भारत खुद हाई पावर इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के निर्माण में आत्मनिर्भर बन जाएगा.
मालगाड़ी से मेल ट्रेन तक का सफर
जब मधेपुरा फैक्ट्री से पहली बार इंजन तैयार होकर निकला था, तब इन्हें मुख्यतः असम, बंगाल और दक्षिण भारत में मालगाड़ियों के लिए भेजा गया था. लेकिन अब यह बदलाव दर्शाता है कि भारतीय रेलवे तकनीक के अगले स्तर पर पहुंच चुका है. अब वही इंजन, जो 6000 टन माल खींच सकता है, यात्री ट्रेनों को भी गति देगा और वह भी पूरी तरह 'मेड इन बिहार'.
स्थानीय रोजगार और गौरव की बात
मधेपुरा रेल फैक्ट्री का प्रभाव सिर्फ रेलवे तक सीमित नहीं है. इससे आसपास के जिलों सहरसा, सुपौल और खगड़िया में रोजगार के नए अवसर बने हैं. यहां सैकड़ों स्थानीय तकनीशियन और इंजीनियर काम कर रहे हैं. यह प्रोजेक्ट बिहार को औद्योगिक नक्शे पर एक मजबूत पहचान दे रहा है.
तकनीक और आत्मनिर्भरता का संगम
रेलवे मंत्रालय के अनुसार, मधेपुरा रेल फैक्ट्री से हर साल करीब 100 इंजन तैयार करने की क्षमता है. यह पूरी तरह भारत निर्मित है डिजाइन से लेकर निर्माण तक. इससे भारत अब विदेशी इंजन आयात पर निर्भर नहीं रहेगा. विशेषज्ञ इसे 'मेक इन इंडिया' और 'वोकल फॉर लोकल' की दिशा में सबसे सफल उदाहरणों में गिनते हैं.
मधेपुरा की यह उपलब्धि सिर्फ एक फैक्ट्री या तकनीक की कहानी नहीं है, यह उस आत्मनिर्भर भारत की झलक है जो दुनिया को दिखा रहा है कि आधुनिक तकनीक अब गांवों और कस्बों से भी निकल सकती है. बिहार की धरती से निकला यह इंजन अब पूरे भारत की रफ्तार बढ़ाने वाला बन चुका है और जल्द ही इसकी गूंज अंतरराष्ट्रीय रेल नेटवर्क में भी सुनाई देगी.