बिहार में दस दिन के भीतर ही पाँच पुल धराशायी हो गए. राज्य के अररिया, सिवान, पूर्वी चंपारण, किशनगंज और मधुबनी ज़िलों में पुल गिरे हैं.
ग्रामीण कार्य विभाग के पुल सलाहकार इंजीनियर बीके सिंह ने बीबीसी से बातचीत में दावा किया है कि अररिया में बकरा नदी पर जो पुल गिरा है, उसको छोड़कर बाकी सभी 'एक्सिडेंटल' है.
उनका कहना है, "बकरा नदी पर बन रहे पुल मामले की जाँच के लिए चार सदस्यीय जाँच दल ने सैंपल इकठ्ठे किए हैं जिसको जांच के लिए आईआईटी पटना और एनआईटी पटना भेजा गया है. एक हफ्ते के अंदर इसकी रिपोर्ट आने की उम्मीद है जिसके बाद ही कोई टिप्पणी की जा सकती है."
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कहां-कहां हुई घटना
राज्य में बीती 18 जून को सबसे पहले अररिया ज़िले में सिकटी प्रखंड में एक पुल गिरा था. यह पुल अररिया के ही दो ब्लॉक सिकटी और कुर्साकांटा को जोड़ने के लिए बन रहा था.
स्थानीय पत्रकार शंकर झा बताते हैं, "18 जून को दोपहर तक़रीबन दो बजे सिकटी के पंडरिया घाट के पास बने इस पुल के दो पाए पूरी तरह से धंस गए और छह क्षतिग्रस्त हो गए. बारिश से बकरा नदी का जलस्तर बढ़ गया था और पुल इसका दबाव झेल नहीं पाया और उद्घाटन से पहले ही गिर गया. यह पुल अगर बन जाए तो लाखों की आबादी को फ़ायदा होगा."
अररिया ज़िले में तीन नदियां बहती हैं- पनार, बकरा और कनकई. बकरा नदी अपनी धारा बदलने के लिए जानी जाती है और इस नदी में धार बहुत ज़्यादा है. साल 2011 में बकरा नदी पर 11 करोड़ की लागत से ये पुल बनना शुरू हुआ था जिसकी ज़िम्मेदारी बिहार पुल निगम के पास थी.
लेकिन बाद में जब बकरा नदी ने अपनी धारा बदली तो साल 2020-21 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना-2 के तहत 182.65 मीटर लंबाई का पुल फिर से स्वीकृत हुआ.
पुल गिरने के बाद ग्रामीण कार्य विभाग के चार सदस्यीय जांच टीम ने घटनास्थल का दौरा किया है.
बीबीसी के पास मौजूद ग्रामीण कार्य विभाग के पत्र में जांच टीम से पुल के फांउडेशन की गहराई, फांउडेशन सब स्ट्रक्चर, सुपर स्ट्रक्चर में प्रयुक्त सामग्रियों की मात्रा, गुणवत्ता और कराए गए कार्य के कौशल की विस्तृत जांच पर रिपोर्ट मांगी गई है.
देर शाम तक ढलाई हुई, कुछ ही घंटों में गिर गया पुल
इसके बाद 22 जून को सिवान में गंडक नहर पर बनी पुलिया ध्वस्त हो गई. महाराजगंज और दरौंदा प्रखंड को जोड़ने वाली ये पुलिया 34 साल पुरानी थी.
स्थानीय निवासी मंजीत बीबीसी से कहते हैं, "ये पुलिया दो पंचायत पटेढ़ा और रामगढ़ को जोड़ती थी. यह 20 फुट लंबी थी. गंडक नहर में पानी आया तो भरभराकर गिर गई. अच्छा यही था कि पुलिया से उस वक्त कोई गुज़र नहीं रहा था."
22 जून की ही रात को पूर्वी चंपारण के घोड़ासहन प्रखंड के अमवा में निर्माणाधीन पुल गिर गया. 1.60 करोड़ की लागत से बन रहा ये पुल अमवा से चैनपुर स्टेशन जाने वाली सड़क पर बन रहा था. आलम यह था कि शाम को इस पुल के ऊपरी भाग की ढलाई हुई और रात होते होते ये भरभराकर गिर पड़ा.
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत ग्रामीण कार्य विभाग ने इस पुल का टेंडर धीरेन्द्र कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को दिया था. जो पूर्वी चंपारण के मुख्यालय मोतिहारी बेस्ड कंपनी है.
कंपनी के निदेशक धीरेन्द्र कुमार से जब बीबीसी ने बात करने की कोशिश की तो उन्होंने न्यूज़ को 'बासी' बताते हुए बाद में बात करने के लिए कहा.
स्थानीय पत्रकार राहुल कुमार बताते है, "बहुत खराब कंस्ट्रक्शन हो रहा था पुल में. स्थानीय लोग लगातार इसकी शिकायत कर रहे थे लेकिन कोई सुनवाई नहीं थी. आख़िर में पुल गिर गया."
'पुल गिरना अफ़वाह है, आपदा जैसी स्थिति थी'
घोड़ासहन के बाद 26 जून को किशनगंज ज़िले में मरिया नदी पर बना 13 साल पुराना पुल धंस गया. ज़िले के बहादुरगंज प्रखंड के गुआबाड़ी पंचायत के पास ये पुल मूसलाधार बारिश के चलते धंस गया है. इस पुल के धंसने से तक़रीबन 15 गांव की आबादी प्रभावित होगी.
चूंकि पुल धंस गया है इसलिए वहाँ पर सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई है. स्थानीय निवासी अकातुल कहते हैं, "दो साल से पुल की हालत ठीक नहीं थी. पुल ऐसे ही टूटा हुआ है लेकिन सरकार का कोई ध्यान नहीं. अबकी बार तो पुल और डैमेज हो गया है. सरकार ध्यान नहीं देगी तो बहुत दिक्कत हो जाएगी. सरकार पुल की मरम्मत कराए."
किशनगंज में पुल धंसने के बाद 28 जून को मधुबनी के झंझारपुर अनुमंडल के मधेपुर प्रखंड में भुतही बलान नदी में निर्माणाधीन पुल का गार्डर गिर गया. 2.98 करोड़ की लागत से बन रहा ये पुल मधेपुर प्रखंड के भेजा कोसी बांध से महपतिया जाने वाली सड़क को जोड़ेगा. दिलचस्प है कि इस मामले में पुल में कस्ट्रक्शन का काम ही मानसून के वक़्त हुआ.
ग्रामीण कार्य विभाग के कार्यपालक अभियंता रामाशीष पासवान ने बीबीसी से बातचीत में पुल गिरने को अफ़वाह बताया है.
उन्होंने कहा, "पुल नहीं बहा है बल्कि ये आपदा जैसी स्थिति थी. कुछ दिन पहले ही अचानक कोसी बराज से पानी छोड़े जाने से अपस्ट्रीम का गार्डर लटक गया है और डाउनस्ट्रीम का गार्डर गिर गया है. संवेदक को कहा गया है कि वो पानी घटने के बाद फिर से कंस्ट्रक्शन का काम शुरू करें. इस मामले में कोई वित्तीय अनियमितता नहीं हुई है."
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
पुल गिरने/ धंसने के इन सभी मामलों में विभाग की तरफ़ से जांच टीम भेजी गई है. लेकिन एक साथ पुल के क्षतिग्रस्त होने के 5 मामले सामने आने की वजह क्या है? बिहार राज्य पथ विकास निगम के रिटायर्ड मुख्य महाप्रबंधक संजय कुमार बीबीसी से पुल गिरने की वजहों को तफ़सील से बताते हैं.
वो कहते हैं, "बीते 10-15 सालों में बिहार में पुल बहुत बने हैं, लेकिन उनके रख-रखाव की नीतियों में खामी रह गई है. पुल में दो महत्वपूर्ण प्वाइंट होते हैं. पहला एक्पैंशन जायंट जिसकी बार बार सफाई होनी चाहिए और दूसरा बीयरिंग जिसकी उम्र दस साल होती है. और क़ायदे से इसे दस साल बाद बदलना या रिपेयर करना चाहिए. ऐसा लगता है कि ये दोनों ही काम नहीं हो रहे हैं."
वो आगे बताते हैं, "मानसून आने से पहले पुल का स्ट्रक्चरल ऑडिट होना चाहिए, जिसके लिए बाक़ायदा इंडियन रोड कांग्रेस की गाइडलाइंस है. पुल गिरने की वजह भ्रष्टाचार और इंजीनियर्स में अनुभव की कमी भी है. जैसे अभी जो पुल मधेपुर में गिरा उसकी वजह गलत वक़्त पर गलत काम था. मानसून आया हुआ है और बीम की ढलाई तीन दिन पहले हुई. इसी तरह घोड़ासहन में शटरिंग फेल्योर के चलते और सिवान में पुल के आख़िरी हिस्से में मिट्टी कटाई के चलते पुल का फांउडेशन बैठ गया."
बिहार अभियंत्रण सेवा संघ ने भी पुल गिरने पर तीन सदस्यीय जांच टीम गठित की है. इंजीनियर्स से जुड़े इस 80 साल पुराने संगठन के महासचिव शशांक शेखर बीबीसी से कहते हैं, "हम लोगों का एक जांच दल लोकेशन्स पर गया है. जो पुल की डिज़ाइनिंग, बिल्डिंग मैटेरियल, सराउंडिंग आदि पक्षों पर जांच करके रिपोर्ट देगा. इस रिपोर्ट के बाद ही हम कुछ कह पाने की स्थिति में होंगे. लेकिन एक स्ट्रक्चर बनाने में प्लानिंग, एक्जीक्यूटिव बॉडी और कांट्रैक्टर शामिल होते हैं. अगर पुल गिर रहे हैं तो चूक कहीं ना कहीं हो रही है."
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