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PRINCE KUMAR RAJ
बीएनएमयू, मधेपुरा की वर्तमान यूएमआईएस कंपनी आईटीआई को लेकर विवाद जारी है। बुधवार को मधेपुरा यूथ एसोसिएशन (माया) के अध्यक्ष सह अधिवक्ता राहुल यादव ने इस कंपनी के खिलाफ कुलपति डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी को आवेदन दिया है। राहुल ने आईटीआइ कंपनी को आर्थिक लाभ पहुंचाने में तत्कालीन कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय, तत्कालीन प्रति कुलपति डाॅ. फारूक अली एवं नोडल ऑफिसर डाॅ. अशोक कुमार की संदिग्ध भूमिका की जांच कराने की मांग की है।
उन्होंने कहा है कि विश्वविद्यालय द्वारा यूएमआईएस कंपनी आईटीआई को तीन सौ रूपये प्रति छात्र की दर से ठेका दिया गया है। साथ ही इसमें शर्त है कि प्रति वर्ष न्यूनतम पचास हजार विद्यार्थियों का भुगतान होगा अर्थात् डेढ़ करोड़ रूपए प्रति वर्ष। तीन सौ रूपये प्रति छात्र यह दर काफी अधिक है और पूरे बिहार में ऐसा किसी भी विश्वविद्यालय में नहीं है। इसको लेकर यहाँ के विद्यार्थियों में शुरू से असंतोष रहा है। कई बार आंदोलन भी हुए, लेकिन तत्कालीन कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय, तत्कालीन प्रति कुलपति डाॅ. फारूक अली यूएमआईएस कंपनी आरटीआइ को संरक्षण देते रहे।
उन्होंने कहा है कि विद्यार्थियों से यूएमआईएस पोर्टल पर पंजीयन हेतु शुल्क 300 रुपए लेने के बाद भी विद्यार्थियों को एक बार में सभी काॅलेज एवं विषय का ऑप्सन नहीं दिया जाता है। कॉलेज एवं विषय बदलने पर बार-बार पैसा लिया जाता है। पता चला है कि विद्यार्थियों के द्वारा जमा कराया गया पैसा सीधे विश्वविद्यालय के अकाउंट में जमा नहीं हो रहा है। अब तक कितना पैसा जमा हुआ, इसकी जानकारी विश्वविद्यालय के वित्त विभाग को नहींहै। अतः अब तक विद्यार्थियों से जो भी पैसा वसूला गया है, उसका पूरा ब्योरा जारी किया जाए।
उन्होंने कहा है कि वित्तीय परामर्शी ने भी वर्तमान यूएमआईएस (UMIS) के विरूद्ध नोट ऑफ डिसेंट दिया है। इसके बावजूद विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय के संरक्षण में तत्कालीन प्रति कुलपति डाॅ. फारूक अली ने आईटीआई कंपनी से यूएमआईएस के कांट्रेक्ट को एक वर्ष बढ़ाने का आदेश दे दिया है। यह विश्वविश्वविद्यालय के नियम-परिनियम के खिलाफ है। तत्कालीन कुलपति ने मीडिया में बयान देकर कहा है कि उन्होंने कांट्रेक्ट नहीं बढ़ाया है, तो फिर कांट्रेक्ट बढ़ाने का पत्र किसके आदेश से जारी हुआ ? क्या प्रति कुलपति के आदेश से वित्तीय मामले में पत्र जारी हो सकता है ? यदि नहीं तो इस पत्र को रद्द करने का कष्ट करना चाहेंगे।
उन्होंने कहा है कि यूएमआईएस कंपनी आरटीआइ से जो कांट्रेक्ट किया गया है, उसके सभी बिंदुओं पर कंपनी ने काम नहीं किया। इसके बावजूद कंपनी को तीन किस्तों में लगभग एक करोड़ पंद्रह लाख रूपये भुगतान कर दिया गया है। यह भुगतान किन परिस्थितियों में किया गया ? इसके लिए जिम्मेदार पदाधिकारियों पर कार्रवाई हो और कंपनी ने जो काम नहीं किया है, उसके बदले भुगतान की गई राशि की रिकवरी की जाए।
उन्होंने आरोप लगाया है कि यूएमआईएस कंपनी आरटीआई लूट का अड्डा बन गई है। आरटीआई को विश्वविद्यालय में कार्यालय बनाने के लिए जितनी सामग्रियाँ और पैसे दिए गए हैं, उसे सार्वजनिक किया जाए। साथ ही इसे कंपनी से वसूला जाए।
उन्होंने कहा है कि यूएमआईएस को बेजा आर्थिक लाभ देने में नोडल ऑफिसर डाॅ. अशोक कुमार सिंह की भूमिका भी संदिग्ध है।डाॅ. अशोक कुमार सिंह विश्वविद्यालय के ऑफिसर की बजाय कंपनी के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। विश्वविद्यालय भंडारगृह में कार्यरत एक कर्मी ने बताया कि डाॅ. अशोक कुमार सिंह ने कम्प्यूटर खरीद में एमआरपी से पांच लाख अधिक का भुगतान कर दिया है। इस पर भंडारपाल एवं वित्तीय परामर्शी ने आपत्ति दर्ज कराई है। लेकिन तत्कालीन कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय ने वह फाइल डाॅ. अशोक कुमार सिंह को ही दे दी।
उन्होंने इस मामले की जांच कराने की मांग की है। साथ ही डाॅ. अशोक कुमार सिंह को विश्वविद्यालय के सभी पदों से हटाते हुए शैक्षणिक कार्य के लिए पैतृक महाविद्यालय भेजने का कष्ट करना चाहेंगे।
उन्होंने कहा है कि बीएनएमयू कोसी प्रमंडल में अवस्थित है, जो गरीब, दलित- महादलित, शोषित-पीड़ित, पिछड़ों का क्षेत्र है। यहाँ यूएमआईएस कंपनी आरटीआइ द्वारा लूट मचाया जा रहा है। अतः विश्वविद्यालय को वर्तमान यूएमआईएस कंपनी आईटीआइ से निजात दिलाया जाए और उसको हुए भुगतान की रिकवरी हो। साथ ही तत्कालीन कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय, तत्कालीन प्रति कुलपति डाॅ. फारूक अली एवं नोडल ऑफिसर डाॅ. अशोक कुमार सिंह की भूमिका की उच्चस्तरीय जांच की जाए।
PRINCE KUMAR RAJ
बीएनएमयू, मधेपुरा की वर्तमान यूएमआईएस कंपनी आईटीआई को लेकर विवाद जारी है। बुधवार को मधेपुरा यूथ एसोसिएशन (माया) के अध्यक्ष सह अधिवक्ता राहुल यादव ने इस कंपनी के खिलाफ कुलपति डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी को आवेदन दिया है। राहुल ने आईटीआइ कंपनी को आर्थिक लाभ पहुंचाने में तत्कालीन कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय, तत्कालीन प्रति कुलपति डाॅ. फारूक अली एवं नोडल ऑफिसर डाॅ. अशोक कुमार की संदिग्ध भूमिका की जांच कराने की मांग की है।
उन्होंने कहा है कि विश्वविद्यालय द्वारा यूएमआईएस कंपनी आईटीआई को तीन सौ रूपये प्रति छात्र की दर से ठेका दिया गया है। साथ ही इसमें शर्त है कि प्रति वर्ष न्यूनतम पचास हजार विद्यार्थियों का भुगतान होगा अर्थात् डेढ़ करोड़ रूपए प्रति वर्ष। तीन सौ रूपये प्रति छात्र यह दर काफी अधिक है और पूरे बिहार में ऐसा किसी भी विश्वविद्यालय में नहीं है। इसको लेकर यहाँ के विद्यार्थियों में शुरू से असंतोष रहा है। कई बार आंदोलन भी हुए, लेकिन तत्कालीन कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय, तत्कालीन प्रति कुलपति डाॅ. फारूक अली यूएमआईएस कंपनी आरटीआइ को संरक्षण देते रहे।
उन्होंने कहा है कि विद्यार्थियों से यूएमआईएस पोर्टल पर पंजीयन हेतु शुल्क 300 रुपए लेने के बाद भी विद्यार्थियों को एक बार में सभी काॅलेज एवं विषय का ऑप्सन नहीं दिया जाता है। कॉलेज एवं विषय बदलने पर बार-बार पैसा लिया जाता है। पता चला है कि विद्यार्थियों के द्वारा जमा कराया गया पैसा सीधे विश्वविद्यालय के अकाउंट में जमा नहीं हो रहा है। अब तक कितना पैसा जमा हुआ, इसकी जानकारी विश्वविद्यालय के वित्त विभाग को नहींहै। अतः अब तक विद्यार्थियों से जो भी पैसा वसूला गया है, उसका पूरा ब्योरा जारी किया जाए।
उन्होंने कहा है कि वित्तीय परामर्शी ने भी वर्तमान यूएमआईएस (UMIS) के विरूद्ध नोट ऑफ डिसेंट दिया है। इसके बावजूद विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय के संरक्षण में तत्कालीन प्रति कुलपति डाॅ. फारूक अली ने आईटीआई कंपनी से यूएमआईएस के कांट्रेक्ट को एक वर्ष बढ़ाने का आदेश दे दिया है। यह विश्वविश्वविद्यालय के नियम-परिनियम के खिलाफ है। तत्कालीन कुलपति ने मीडिया में बयान देकर कहा है कि उन्होंने कांट्रेक्ट नहीं बढ़ाया है, तो फिर कांट्रेक्ट बढ़ाने का पत्र किसके आदेश से जारी हुआ ? क्या प्रति कुलपति के आदेश से वित्तीय मामले में पत्र जारी हो सकता है ? यदि नहीं तो इस पत्र को रद्द करने का कष्ट करना चाहेंगे।
उन्होंने कहा है कि यूएमआईएस कंपनी आरटीआइ से जो कांट्रेक्ट किया गया है, उसके सभी बिंदुओं पर कंपनी ने काम नहीं किया। इसके बावजूद कंपनी को तीन किस्तों में लगभग एक करोड़ पंद्रह लाख रूपये भुगतान कर दिया गया है। यह भुगतान किन परिस्थितियों में किया गया ? इसके लिए जिम्मेदार पदाधिकारियों पर कार्रवाई हो और कंपनी ने जो काम नहीं किया है, उसके बदले भुगतान की गई राशि की रिकवरी की जाए।
उन्होंने आरोप लगाया है कि यूएमआईएस कंपनी आरटीआई लूट का अड्डा बन गई है। आरटीआई को विश्वविद्यालय में कार्यालय बनाने के लिए जितनी सामग्रियाँ और पैसे दिए गए हैं, उसे सार्वजनिक किया जाए। साथ ही इसे कंपनी से वसूला जाए।
उन्होंने कहा है कि यूएमआईएस को बेजा आर्थिक लाभ देने में नोडल ऑफिसर डाॅ. अशोक कुमार सिंह की भूमिका भी संदिग्ध है।डाॅ. अशोक कुमार सिंह विश्वविद्यालय के ऑफिसर की बजाय कंपनी के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। विश्वविद्यालय भंडारगृह में कार्यरत एक कर्मी ने बताया कि डाॅ. अशोक कुमार सिंह ने कम्प्यूटर खरीद में एमआरपी से पांच लाख अधिक का भुगतान कर दिया है। इस पर भंडारपाल एवं वित्तीय परामर्शी ने आपत्ति दर्ज कराई है। लेकिन तत्कालीन कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय ने वह फाइल डाॅ. अशोक कुमार सिंह को ही दे दी।
उन्होंने इस मामले की जांच कराने की मांग की है। साथ ही डाॅ. अशोक कुमार सिंह को विश्वविद्यालय के सभी पदों से हटाते हुए शैक्षणिक कार्य के लिए पैतृक महाविद्यालय भेजने का कष्ट करना चाहेंगे।
उन्होंने कहा है कि बीएनएमयू कोसी प्रमंडल में अवस्थित है, जो गरीब, दलित- महादलित, शोषित-पीड़ित, पिछड़ों का क्षेत्र है। यहाँ यूएमआईएस कंपनी आरटीआइ द्वारा लूट मचाया जा रहा है। अतः विश्वविद्यालय को वर्तमान यूएमआईएस कंपनी आईटीआइ से निजात दिलाया जाए और उसको हुए भुगतान की रिकवरी हो। साथ ही तत्कालीन कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय, तत्कालीन प्रति कुलपति डाॅ. फारूक अली एवं नोडल ऑफिसर डाॅ. अशोक कुमार सिंह की भूमिका की उच्चस्तरीय जांच की जाए।