दशकों पुराने सर्टिफिकेट, जो समय के साथ पीले पड़ चुके हैं और छूते ही टूटने लगते हैं, अब इतिहास नहीं बल्कि डिजिटल भविष्य का हिस्सा बनने जा रहे हैं. बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने अपने पुराने अभिलेखों को बचाने और आधुनिक तकनीक से सुरक्षित करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है.
बोर्ड अब न सिर्फ 1980 तक के रिकॉर्ड को सुरक्षित कर चुका है, बल्कि 1952 तक के प्रमाण पत्रों को संरक्षित और डिजिटल करने की तैयारी में जुट गया है.
1980 तक का डाटा सुरक्षित, अब और पीछे की तैयारी
बिहार बोर्ड के अनुसार वर्ष 1980 तक के सभी उपलब्ध रिकॉर्ड सुरक्षित कर लिए गए हैं और उन्हें डिजिटल रूप में भी संरक्षित किया जा चुका है. इससे पहले के दस्तावेज काफी नाजुक हो चुके हैं. कई प्रमाण पत्र इतने पुराने हैं कि उन्हें हाथ में लेते ही कागज टूटने लगता है. इसी वजह से बोर्ड ने इन्हें सीधे स्कैन करने के बजाय पहले वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित करने का निर्णय लिया है.
केमिकल ट्रीटमेंट से बढ़ेगी उम्र
पुराने प्रमाण पत्रों को बचाने के लिए विशेष केमिकल से उनकी सफाई की जाएगी. इसके बाद उन्हें सावधानीपूर्वक लैमिनेट किया जाएगा, ताकि उनकी उम्र लंबी हो सके. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस प्रक्रिया के बाद ये दस्तावेज अगले 50 वर्षों तक सुरक्षित रह सकते हैं. चूंकि पुराने समय में डिग्रियां हाथ से लिखी जाती थीं, इसलिए यह भी ध्यान रखा जा रहा है कि केमिकल के संपर्क में आने से स्याही फैले नहीं या धुंधली न पड़े.
1952 तक के सर्टिफिकेट बोर्ड के पास
बिहार बोर्ड के अध्यक्ष आनंद किशोर ने बताया कि समिति के पास वर्ष 1952 तक के सर्टिफिकेट मौजूद हैं. लक्ष्य यह है कि जहां तक संभव हो, सभी पुराने अभिलेखों को सुरक्षित किया जाए. उन्होंने कहा कि यह काम ठीक उसी तरह किया जा रहा है, जैसे अभिलेखागार में प्राचीन पांडुलिपियों को संरक्षित किया जाता है. बोर्ड यह भी देख रहा है कि किस अवधि के सर्टिफिकेट्स की सबसे ज्यादा मांग आ रही है, ताकि प्राथमिकता उसी अनुसार तय की जा सके.
एक क्लिक पर मिलेगा प्रमाण पत्र
संरक्षण के बाद सभी प्रमाण पत्रों को स्कैन कर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया जाएगा. इसके बाद संबंधित व्यक्ति को सर्टिफिकेट उपलब्ध कराना आसान हो जाएगा. सत्यापन की प्रक्रिया भी तेज और पारदर्शी होगी. अब पुराने रिकॉर्ड के लिए फाइलों में भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि ये एक क्लिक पर उपलब्ध होंगे.
डिजिटलीकरण की इस पहल से बिहार बोर्ड न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहर को बचा रहा है, बल्कि छात्रों और पूर्व परीक्षार्थियों की वर्षों पुरानी समस्या का भी समाधान कर रहा है. हाईटेक होते बिहार बोर्ड की यह कोशिश आने वाले समय में शिक्षा व्यवस्था को और भरोसेमंद बनाने की दिशा में अहम कदम मानी जा रही है.