सर्द के मौसम की शुरूआत हो चुकी थी , निरंतर बढ़ती ठंडी के कारण सुबह की धूप भाने लगी थी ।इस ठंढ़ की कपकपाहट में भी मेरी इश्क पनपती जा रही थी ।सुबह से शाम और रात का दो पहर गुजरना मुश्किल बनता जा रहा था ।एक चाय और सुबह की धूप की तरह उनकी लत लगती ही जा रही थी । जबतक उनसे बात ना हो , रात ढलती ही ना थी रातों के तीन पहर में ही , मानो कई एहसास सूली पर चढ़ती रहती ।बस ... अब उनसे बातें करना चाय पीने के बराबर होने लगी ।सुबह , शाम ..बस इंतज़ार करते रहना कब फोन की घण्टी बज उठे ।सुबह की सर्द भरी मौसम में मानो जैसे .... शरीर की गरमाहट बस उनके गर्माहट भरी बातों से ही होने लगी , मीठी - सी - आवाज ,चुपचाप सुनते रहना , कोई प्रतिउत्तर ना देने पर ..."सुन रहे हो ना" का सवाल मानों आज भी यहीं कहीं गूँज रही हो जो बार - बार कानों को उस ओर खींचती है ।वह हर दिन एक सवाल बड़े ही सादगी से कर लिया करती थी - " कछू बोला भी करो जी , कहीं कोनो और निक त न लग गइल"।और जबाब में इतना कह जाय करता था - "बस, तोहरा क कोई निक लग जाई तो बताई देना" ।चाय और ये बात करने की लत हर दिन की आखरी सवाल , सवाल ही बनी रह जाती ...।ये फोन की इश्क , बार - बार रिंग बजने का इंतज़ार , बड़ा ही सुखद था लेकिन उसके बीच सिहरन भरी ठंड ... चाय की याद दिला दिया करती थी ।बस चाय के बाद कुछ बाकी रह जाता तो ... उसका फोन आना ।लगातार बढ़ रही सर्दी और लगातार बढ़ रही हमारी बेताबी कोई वर्षों की नहीं थी अभी एक पख भी ना गुजरे थे ,लेकिन एक पल उसके बिना गुजरना मुश्किल बनता जा रहा था ।उनका फोन आते है चहरे की रौनक इस तरह बढ़ जाती मानो ... हम वर्षों से जुदा हो , और वो मेरी बाहों में आ गई हो ।यूँ ही कभी रात की चाँदनी तो कभी सुबह की लालिमा और उसके फोन के साथ दिन ढलने लगा।एक शाम उसका फोन आया और उसने कहा - कुछ दिनों तक फोन नहीं कर पाऊँगी ।मैंने कहा क्यों ? उसने कहा - फोन पापा रखते हैं , अभी फ्री था तो सोचे बता दें ।मैंने कहा - ठीक है , कोई बात तो नहीं ना ? उसने कहा - नहीं ।और फिर उसने फोन रख दिया ।दो दिन बीत गए पर उसका फोन ना आया , मुझे ये बात हजम ना होने लगी ।मैं सोचने लगा आखिर कुछ तो बात है ।जिसके लिए अब मैं बीच - बीच में फोन लगाने लगा पर फोन ऑफ आता ।इस तरह से दिन - दिन गुजरता रहा, पर फोन ना आया।आज फिर उनकी यादों को समेटते , जैसे ही मैं खाने पर बैठा अचानक फोन की घंटी बज उठी ... मैं दौड़कर फोन की तरफ लपका लेकिन फोन अनजान नंबर से था , मैंने जैसे ही "हलो" किया फोन कट गई।मैं खाने की ओर जाते हुए सोचने लगा आखिर कौन था ? फिर सोचा कहीं उसका फोन तो ना था ? एकाएक स्मरण हुआ उसका फोन दोपहर में कभी नहीं आया करता है , शायद कोई रोंग नंबर होगा ।लेकिन ये क्या मैं जैसे ही दुबारा खाना शुरू करता कि एक बार फिर घंटी बज उठी ।मैंने तुरंत रिसीव किया और कहा " कौन ? , कुछ जबाब ना मिल पाया , फिर मैंने कहा - "अरे कहाँ लगाए हो बोलो तो सही " ।फिर हल्की सहमी सी आवाज आई " मैं हूँ " ।ये मधु (काल्पनिक नाम ) का ही कॉल था ।कितने दिन उससे बात करते गुजर चुके थे पर इतनी परेशान कभी ना थी ।मैंने पूछा -कौन बोल रहें हैं , उसने कहा - मधु ।मैंने कहा - हाँ , बोलो , क्या हुआ ? उनका जबाब आया - आप ठीक तो हैंं ना ।मैंने कहा - हाँ ।उसने कहा - पापा एक लड़का देख के आए हैं ,और उससे अगले महीनें शादी होगी ।ये सुनते ही ऐसा लगा मानो ... जैसे सब कुछ खत्म हो गया ।लेकिन अपने को कुछ बहलाते हुए उनसे पूछा - तोहरा के निक लगल की नाहीं , अच्छा हैं ना ? उनका जबाब कुछ ना था ।वो रोते हुए फोन रख दी । मैंने कई बार फोन लगाया पर उठ ना पाया ।मैं आज भी अपने सवालों के जबाब के लिए फोन रिंग बजने का इंतजार किया करता हूँ ....।शायद फिर से फोन की घण्टी बज उठे ...
- मनकेश्वर महाराज "भट्ट" ...✍️
रामपुर डेहरू , मधेपुरा (बिहार) 852116.