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सहरसा। कोरोना वायरस से उत्पन्न महामारी से बचाव को लेकर प्रधानमंत्री ने 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा के बाद किसान असमंजस की स्थिति में दिख रहे हैं। मेहनत से लगाई गई गेहूं की फसल खेतों में पककर तैयार हो गई है तो वहीं मक्का की फसल में निऔनी और सिचाई करने का समय है, जबकि गरमा धान व मखाना फसल सिचाई के अभाव में खेतों में मुरझाने लगे हैं। ऐसे में किसानों की दुविधा यह है कि अगर जान की परवाह करते हुए लोग घरों में कैद हो जाते हैं तो उनकी फसल बर्बाद हो जाएगी फिर इस विपरीत स्थिति के गुजरने के बाद उनका और उनके परिवार का क्या होगा? अगर बाहर निकलकर फसल को बचाते हैं और ऐसे में महामारी के चंगुल में फंस जाते हैं तो उनके बाद उनके परिवार का क्या होगा? वहीं पशुपालकों के समक्ष ये दुविधा है कि अपनी जान बचाए या फिर अपने दरवाजे पर खूंटे से बंधे पशु जो चारा के लिए उनका मुंह निहार रहे हैं उनकी जान बचाए? किसानों की हालत ये कि वो किधर जाए। एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ खाई। किसान घर पर जरूर हैं लेकिन उनकी आत्मा उनके मुरझाते खेतों और उनकी तरफ चारे के लिए निहारते पशुओं के लिए तड़प रही है।
सहरसा। कोरोना वायरस से उत्पन्न महामारी से बचाव को लेकर प्रधानमंत्री ने 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा के बाद किसान असमंजस की स्थिति में दिख रहे हैं। मेहनत से लगाई गई गेहूं की फसल खेतों में पककर तैयार हो गई है तो वहीं मक्का की फसल में निऔनी और सिचाई करने का समय है, जबकि गरमा धान व मखाना फसल सिचाई के अभाव में खेतों में मुरझाने लगे हैं। ऐसे में किसानों की दुविधा यह है कि अगर जान की परवाह करते हुए लोग घरों में कैद हो जाते हैं तो उनकी फसल बर्बाद हो जाएगी फिर इस विपरीत स्थिति के गुजरने के बाद उनका और उनके परिवार का क्या होगा? अगर बाहर निकलकर फसल को बचाते हैं और ऐसे में महामारी के चंगुल में फंस जाते हैं तो उनके बाद उनके परिवार का क्या होगा? वहीं पशुपालकों के समक्ष ये दुविधा है कि अपनी जान बचाए या फिर अपने दरवाजे पर खूंटे से बंधे पशु जो चारा के लिए उनका मुंह निहार रहे हैं उनकी जान बचाए? किसानों की हालत ये कि वो किधर जाए। एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ खाई। किसान घर पर जरूर हैं लेकिन उनकी आत्मा उनके मुरझाते खेतों और उनकी तरफ चारे के लिए निहारते पशुओं के लिए तड़प रही है।